Chhath Puja हिंदुओं का त्योहार है जिसे बिहार में बहुत बड़े और धार्मिक तरीक़े से मनाया जाता है। इस त्योहार में सारे लोग साफ सफाई का बहुत ख़्याल रहते हैं। पिछले साल मैं गंगा जी के घाट पर छठ पूजा का भागीदार बना था, लोगों की असीम भीड़ जिधर देखो लोग ही लोग और हर कोई छठी मैया की भक्ति में सरोबार।
ये एक ऐसा पल था जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता और तब मुझे समझ आया कि क्यों छठ और बिहार एकदूसरे के पर्यावाची हो गये हैं।

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Chhath Puja | छठ पूजा
छठ पूजा सूर्य देव की पूजा के रूप में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। इसमें सूर्योदय और सूर्यास्त के समय विशेष रूप से पूजा की जाती है, यह एक ऐसा पर्व है जिसमे हम डूबते सूर्य को भी पूजते हैं।
इस पर्व का आयोजन नदियों या झीलों के किनारे किया जाता है, जहां पानी के आगे सूर्य की पूजा की जाती है। छठ पूजा के दौरान, महिलाएँ व्रत रखते हैं और परिवार की सभी सदस्य पूजा सहयोग कृति हैं।
छठ पूजा का महत्व न केवल धार्मिक होता है, बल्कि यह एक प्राकृतिक पर्व भी है, जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया जाता है। छठ पूजा के इस महत्वपूर्ण पर्व को सजीव रूप से मनाने से हम अपने पर्यावरण का भी संरक्षण करते हैं।
इस पर्व के माध्यम से हम अपनी परंपराओं को महसूस करते हैं और समाज में एकता और सामरस्या को बढ़ावा देते हैं। इसके साथ ही, यह पर्व विभिन्न खाद्य वस्त्रों, गीतों, और नृत्यों का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।
छठ पूजा के सामग्री
सुप पर रखे जाने वाले किसी भी पदार्थ में मिलावट नहीं होना चाहिए, छठ पूजा के लिए जरुरी सामान निम्नलिखित हैं
नई साड़ी
बांस की बड़ी टोकरी, सूप
एक लोटा, ग्लास, थाली, चम्मच
दूध
ठेकुआ, 5 गन्ने पत्ते लगे हुए, शकरकंदी, सुथनी, बड़ा वाला मीठा डाभ नींबू, हल्दी, मूली, अदरक का हरा पौधा, शरीफा, केला, नाशपाती, शकरकंदी, सिंघाड़ा, पानी वाला नारियल
मिठाई, गुड़, गेहूं, चावल का आटा
चावल, सिंदूर, कलावा, दीपक, शहद, धूप, कुमकुम, पान और सुपारी
छठ पूजा पहला दिन: नहाय-खाय
नहाय खाय से छठ पूजा का शुरुआत होता है, यह बहुत ही शुद्ध तरीक़े से मनाया जाता है इसमें शुद्धता का बहुत ख्याल रखा जाता है। इस व्रत को करने वाले २४ घंटे तक निर्जल उपवास रखते हैं।
छठ पूजा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में होता है, ये शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से नहाय-खाय के रूप में शुरू होता है और सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य दे का समाप्त होता है

छठ पूजा दूसरा दिन: छठ पूजा खरना या लोहंडा
खरना को छठ पूजा का दूसरा दिन होता है, इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर शुद्ध दूध, शुद्धज़ चावल और गूड़ का खीर बना कर भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर उस खीर को प्रसाद के रूप लोगों में बाँटा और खाया जाता है

छठ पूजा तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
छठ पूजा का तीसरा दिन सबसे मुख्य दिन होता है, इसी दिन मुख्य पूजा किया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य के डूबते रूप को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती और उनके परिवार के सभी सदस्य भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और जल चढ़ाते हैं

छठ पूजा चौथा दिन: उगते सूर्य को अर्घ्य
छठ पूजा का चौथा दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दे कर इस पूजा समापन होता है और इसके बाद व्रती छठ पूजा का पारण करते हैं और भक्तों में प्रसाद का वितरण किया जाता है।

इस छठ पूजा में, हम सूर्य की उपासना करके नई ऊर्जा और शक्ति की प्राप्ति करते हैं, और हमारे पर्यावरण की देखभाल करते हैं। इस पर्व को मनाने से हमारे जीवन में सुख, समृद्धि, और सामाजिक सामंजस्य की भावना होती है।
छठ पूजा का यह महत्वपूर्ण पर्व हमारे समाज के लिए एक अनमोल धरोहर है, और हमें इसे संरक्षित रखना चाहिए। यह पर्व हमारे पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी का प्रतीक है और हमारे संगठन को स्थानीय और वैश्विक स्तर पर बेहतरीन समर्थन और प्रतिष्ठा प्रदान करता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है, जो विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और नेपाल में मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव की पूजा के रूप में मनाया जाता है और छठ गाते हुए सूर्य की प्रार्थना की जाती है। छठ पूजा के दौरान, लोग सूर्य के साथ अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं और उनके आशीर्वाद की मांग करते हैं।
छठ पूजा की खास बातें
छठ पूजा साल में दो बार मनाया जाता है- पहला चैत्र महीने में और दूसरा कार्तिक महीने में
छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जिसे स्त्री-पुरुष, किन्नर एक समान रूप से मनाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि महिलायें संतान प्राप्ति के लिए छठी मईया का व्रत रखती हैं और पुरुष अपने कार्य और उन्नति के लिए व्रत रखते हैं।
ऐसी मान्यता है की देव माता अदिति ने छठ पूजा किया था और उनके पूजा से प्रसन्न हो कर छटी मैया ने उन्हें सर्व गुण सम्पन्न पुत्र होने का वरदान दिया था, तभी से देव सूर्य मंदिर, औरंगाबाद में छठ पूजा का चलन शुरू हुआ
वाल्मीकि रामायण के अनुसार बिहार के ऐतिहासिक नगरी मुंगेर में माता सीता ने सबसे पहले छठ पूजा की थीं। आज इस जगह पर माता सीता चरण मंदिर मौजूद है।
ऐसी मान्यता है कि महाभारत में द्रौपदी और सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्यदेव की पूजा की थी।